प्रकृति ही प्रगती है
आज मेरी जिस बात पर हँस रहा है तू इतना
कल तुझे इसी बात पर रोना आएगा
तोड़ कर यह सारे मजबूत पहाड़ अब
आख़िर तू और कितनी सड़कें बनवाएगा
जब होगी ही नहीं तेरे घर के नीचे कोई ज़मीन
तो आख़िर किस जगह रहकर तू कमा पायेगा
कुद्रत के बनाये इस खुले आसमान और नज़ारों पर
अब और कितनी लकीरें खींचता चला जाएगा
बहुत कम है हाथ से मुँह तक की यह दूरी
पेट की इस भूख के लिए तू कितनी दूरियाँ बढ़ाएगा
जिस धरती पर खड़ा है तू इतना घमंड लेकर
माटी में इसकी ही इक दिन तू दब सा जायेगा
जा रहा है काटे पेड़ हटाए जंगल तू कितने
करीब है वो दिन जब तू इतना घबराएगा
पानी की एक बूँद होगी बहुत दूर तुझसे
तू तो एक दिन सांस भी न ले पायेगा
आज मेरी इस बात पर हँस रहा है तू इतना
कल तुझे इसी बात पर रोना आएगा |
नहीं चाहिए इस धरती को एक और बेटा- बेटी
कर तू ग़ौर वरना इस बात पर बहुत जल्द पछतायेगा
इन्ही में शामिल होंगे तेरे बच्चे भी एक दिन
जिन्हें तू प्रेम नहीं तब बोझ कहता चला जायेगा
प्रकृति ही प्रगती है न जाने तू इस बात को
आख़िर कितनी क्षति बाद समझ पायेगा
मिलावट की है मासूम बच्चों के भी दूध में तूने
अब और न जाने कितने जीवन दाँव पर लगाएगा
अरे जब बचेगा ही नहीं कोई मनुष्य तेरे दायरे में
फिर अपने यह ठाट-बाट तू किसे दिखायेगा
आज मेरी इस बात पर हँस रहा है तू इतना
कल तुझे इसी बात पर रोना आएगा ||
अब तो दवाइयों ने भी तोड़ दिया है दम आख़िर
तू उस कुद्रत से न जाने और कितनी होड़ लगाएगा
पूछ रहे पेड़ पहाड़ पौधों के मतलब कुछ बच्चे
पुस्तक का ज्ञान कहकर तू इन्हें कब तक टालता जाएगा
तेरी कहानी लिखने योग्य जब नहीं बचेंगे कुछ पन्ने
तो कंकड़ बेचकर तू आख़िर क्या नाम कमायेगा
लगे हैं कचरे के ढेर तेरे ही घर के सामने
इसी कचरे के पीछे तू बहुत जल्द छिप सा जाएगा
अपनी ही बनाई इस सीमित दुनिया में तू
एक दिन ख़ुद ही सिमटता चला जाएगा
आज मेरी जिस बात पर हँस रहा है तू इतना
कल इसी बात पर तू बहुत लज्जित हो जाएगा
आज मेरी जिस बात पर हँस रहा है तू इतना
कल तुझे इसी बात पर रोना आएगा |||
दूर नहीं है अब तुझसे वो दिन कुछ ऐसा
जब रह जाएगा तेरे पास केवल तेरा ही पैसा
छोड़ जाएगा तेरा साया भी तेरा साथ उस दिन
तब तुझे बचाने ऊपरवाला भी न आएगा
आज मेरी जिस बात पर हँस रहा है तू इतना
कल तुझे इसी बात पर रोना आएगा ||||
आसावरी शर्मा